सुकवारो अब बस्ती में किंजर-किंजर के साग-भाजी बेचय अउ कुरिया में राहय। ओला एक बात के संतोष रहीस कि ओकर दूना लइका मन ओकर आंखी के आघु में हावय। ओहा अपन लइका मन के खाय पीये ले लेके कपड़ा लत्ता तक के खरचा उठाय बर धरलीस।
ओ दिन मेहा पटेवा बाजार म गिंजरत रहेंव ओतके बेरा मोर सुखदेव भइया संग भेंट होगे। राम रमउवा होय के बाद मेहा ओला पूछ परेंव बने बने गा सुखदेव भइया। अतका ला सुनीस अउ सुखदेव भइया जोर जोर से रोय बर धर लीस। मै डेररा गेंव कहूं अनीत बात नई पूछ डरेंव का कहीके। सुखदेव भइया रोवत रोवत कहीस। का बने बने ला बताहुं संगी। इहां कुंछु बने नइये। जब संतान हा कुभारज निकल जाथे तब ओहा अपन दाई ददा बर जमदूत ले उपर हो जाथे। मोर दूनो टुरा मन मंद पीये बर धर लेहें। अपन गोसइन मन ला घलो मंद पीये बर सीखो डारे हें। अब तो घर के हडिया के चाउर हा घलो नई बाचय। टूरा मन मंद पीथें अउ रात दिन चित्ती जुआ खेलथें। जब देखबे तब घर में लड़ई झगड़ा माते रइथे। ओकर मन के बात ला नई मानबे तब ओमन मारे बर डंडा घलो उचा लेथे। ओ दिन मोर छोटे टुरा हा बरत चुल्हा के लकड़ी निकाल के मोला अब्बड़ मारीस। ओहा खेत बेच के मोला पइसा दे काहत रहीस। पुरखा के चिनहा ला नई बेंचव कहेंव तब ओहा मोर संग मारपीट करे बर धर लीस। इही हाल मोर भाई भोगदेव के घलो होगे हावय। ओकरो बेटा मन रात दिन चित्ती जुआ खेलत रथें अउ अपन दाई ददा संग मारपीट करत रथें। घर के धान चाउर ला बेचके मंद पीथे अउ जुआ खेलथें। दाई ददा मन संग राो मारपीट करत रथें। हमन कोन जनम के पाप ला भोगत हावन संगी मोर समझ में नई आवत हे। सुखदेव भइया रोवत-रोवत बोलिस।
मेहा सुखदेव भइया ला चुप करा के होटल म चहा पीया के बिदा करेंव। मेहा तो जानत रहेंव सुखदेव अउ भोगदेव भइया मन अपन इही जनम के पाप ला भोगत हावे कहीके। मोला जुन्ना बात सुरता आय बर धर लीस। सुखदेव भोगदेव के महतारी सुकवारो हा अपन दूनो लइका मन उपर अब्बड़ मया करय। ओहा तो बेवा होय के बाद चुरी पहिर के दूसर गांव चल दे रहीस। फेर अपन लइका मन ला नई छोड़ सकीस अउ अपन दूसर मरद ला छोड़ के अपन लइका मन मेर फेर लहुट के आगे।
दुनिया भर के सुख रहीस सुकवारो के बिहाता घर में। मया करइया गोसइया, नान-नान दू झन लइका अउ सियानीन सास। पांच एकड़ भुइयां रहीस जेमा दूनो परानी मिल के खूब मिहनत करय। गाय-भइस सबो रहीस ओकर घर। घर में चीज बस रहीस तब चार झन सगा मन घलो रोज जुरियाय रहय। फेर सबो सम्मे एक जइसे नई राहय आदमी के जिनगानी में अंधेरी अंजोरी आवत रहिथे। कभू रानी हा भीख मांगे बर धर लेथे तो कभू-कभू मांग के खवइया हा राजा रानी बन जथें। वइसने सुकवारो के जिनगानी में अंधियारी पाख आगे। एक दिन ओकर गोसइया हा खेत ले लहुटिस तब ओहा बोखार म हकरत रहीस। ओ बोखार हा उतरबे नई करीस। खूब इलाज कराय गीस इहां तक के बइगा गुनिया घलो ला देखाय गीस। झाड़ फूंक कराय गीस फेर सुकवारो के गोसइया चेत नई करीस। अउ सियान महतारी। जवान घरवाली अउ नान-नान लइका मन ला रोवत कलपत छोड़ के भगवान घर चल दीस। सुकवारो के गोसइया के मरे के बाद गांव में लोगन मन किसीम-किसीम के गोठ करे बर धर लीन। कोनो काहय सुकवारो के गोसइया हा देव-ताहा बोइर रूख के खालहे में पीसाब बइठे रहीस तेकरे सेती देवता हा ओकर से नाराज होगे। तो कोनो काहय दुसमन मन सुकवारो मन ला बने खात पीयत नइ बखत देखे सकीन एकरे सेती ओला धूर बान मरवा दीन। तब कोनो-कोनो सुकवारो ला टोनही कहे बर धर लीन। ओमन कहे बर धर लीन कि सुकवारो हा अपन मरद ला खा दीस। इहीच बात ला सुकवारो के सास हा धर लीस अउ गली-गली किंजर-किंजर के ए कहे बर धर लीस कि मोर बहु हा मोर बेटा ला खा दीस अब ओहा मोर नाती मन ला घलो नई बचाही। आजकल कलजुग के जमाना आय। सही बात के हुकारू भरइया खोजे ले नई मिलय अउ गलत बात के मनइया मन के लेन लग जाथे। अब काहे सुकवारो गांव भर बर टोनही होगे। एक दिन सुकवारो के सास हा ओला अपन घर ले निकाल दीस। का करतीस बिचारी हा रोवत कलपत अपन मइके चल दीस। उहा दाई ददा तो रहीन नहीं, भाई भउजी के राज रहीस। के दिन ले ओला अपन घर में राखतीन। ओकर भाई मन मउका देख के एक झन जात सगा ला खोजीन अउ ओकर संग सुकवारो ला चुरी पहिरवा के छुट्टी पागीन। ए प्रकार सुकवारो अपन नवा ससुरार घर पहुंचगे। फेर उहां ओला चेन कहां। ओला रात दिन अपन दूनो लइका मन के सुरता आवय। ओमन का खात होही का पहिरत होही इही सोच-सोच के ओहा रोवय। कभू-कभू तो रतिहा ओला अइसे लागय कि ओकर लइका मन ओला हुत करावत हे। ओहा रतिहा झकना के उठ जाय अउ रोय बर धर लय। एक दिन सुकवारो होत बिहनिया कहूं चल दीस। अउ मुंधियार होय के बाद लहुटिस। ओकर घर के मन पूछीन तब ओहा कहीस मेहा अपन लइका मन ला देखे बर गे रहेंव। ओकर ससुरार वाला मन अड़बड़ नाराज होइन। फेर सुकवारो कहां मानने वाली रहीस। ओहा घेरी बेरी अपन लइका मन ला देखे बर जाय बर धर लीस। ओकर नवा गोइसया ओला अडबड़ मारय पीटय। फेर वोहा अपन लइका मन के मोह ला नई छोड़ सकीस, अउ ओकर अपन जुन्ना ससुरार जवई हा बंद नई होइस। थक हार के सुकवारो नवा गोसइया हा ओला अपन घर ले निकाल दीस। सुकवारो कहां जातीस ओहा अपन जुन्ना ससुरार गांव चल दीस। उहां ओला एक घर म एक ठन कुरिया मांग के उहां रहे बर धर लीस। सुकवारो अब बस्ती में किंजर-किंजर के साग भाजी बेचय अउ कुरिया में राहय। ओला एक बात के संतोष रहीस कि ओकर दूना लइका मन ओकर आंखी के आघु में हावय। ओहा अपन लइका मन के खाय पीये ले लेके कपड़ा लत्ता तक के खरचा उठाय बर धर लीस। एक दिन लइका मन के डोकरी दाई घलो गुजर गे। अब सुकवारो अपन जुन्ना घर म हमा गे। एक झन उजर करीन तब ओहा जवाब दीस के मेहा अपन बेटा मन के घर म हमाय हाववं। कोनो दूसर के घर नई हमाय हंव। लोगन मन चुप होगे। अब सुकवारो के जुन्नास दिन फेर बहुरगे। वोहा अपन दूनो बेटा मन संग खूब मेहनत करीस तब ओकर भुइया हा फेर सोना उपजाय बर धर लीस, ओकर घर बने चीज बस सकलागे। थोड़के दिन के बाद सुकवारो अपन दूनो बेटा मन के बिहाव कर दीस। ओकर घर दू झन बहु आगे। ओकर मन के जिनगानी हंसी खुसी चले बर लागगे। फेर हर गांव में एक दू झन मंथरा होथे। वैसने मंथरा मन ला सुकवारो के हांसत खेलत जिनगानी सहिस नहीं। ओमन सुकवारो घर आगी लगाना सुरू कर दीन। मंथरा मन सुकवारो के बहु मन के कान नाक ला भरना सुरू कर दीन। कोनो काहय तुहर मन के सास हा नान-नान लइका मन ला छोड़ के चल दे रहीस फेर इहां जुठा चाटे बर काबर हावे। तो कोनो काहय तुहर सास के चरित्तर ला का कबे। ए हा तो गांव भर ला डउका बना डारे रहीस। एकरे सेती अपन ससुरार ले घेरी बेरी भाग-भाग के आवय। तो कोनो काहय तुहर सास हा तो बिखाहिल टोनही आय एकरे सेती तुंहर डोकरी सास हा एला अपन घर ले निकाल दे रहीस। कोनो दिन तुंहर नान-नान लइका मन उपर एकर आंखी झूल जाही तब बड़ अनरथ हो जाही। अइसन बघनीन टोनही ला तो गांव म नई राखना चाही। एकर तो मुड़-मुड़ा के गांव ले बाहिर खेदार देना चाही। एकर असर ये होइस कि सुकवारो के बहु मन ओकर खिलाफ होगे। अब तो सुकवारो घर रात-दिन झगरा माते बर धर लीस। सुरू-सुरू म तो सुकवारो के बेटा मन अपन महतारी के पक्छ लीन फेर अपन सुआरी मन के हांव-हांव, झांव-झांव अउ कांव-कांव ला देख के उहू मन अपन मुड़ी ला गडिया दीन। एक दिन सुकवारो के बहु मन ओला अपन घर ले निकाल दीन। का करतीस बिचारी हा। ओहा तरिया पार म एक ठन कुंदरा बना के रहे बर धर लीस। एकर बाद सुकवारो के बेटा बहू मन ओला झांके बर घलो नइ आइन। जब तक ले सख चलीस सुकवारो हा बनी भूति करके अपन जिनगानी ला चलइस ओकर बाद ओहा भीख मांगे बर धर लीस। येमा न सुकवारो के बेटा मन ला लाज लागीस अउ न ओकर बहु मन के नाक कटइस। एक दिन सुकवारो बिचारी मरगे ओकर बेटा मन कहीन कि ए तो चुरी पहिर के दूसर घर चल दे रहीस एला हमन काबर माटी देबो। फेर गांव के सियनहा मन के कहे म बड़ मुसकुल में अपन महतारी ला ओमन माटी दीन।
अब आज सुकवारो के बेटा मन के पारी आगे हावय। अब ओकर संतान मन ओमन ला दुख देवथें। काबर कि अपन नान पन मे ओमन इही देखे अउ सीखे हावय कि घर के सियान मन ला कइसे तरसा-तरसा के मारे जाथे। उही ला अब लइका मन अब अपन दाई ददा मन उपर लहुटावथे। तब ओमन ला रोना आवथे। आदमी जइसे करम करथे वइसने भोगथे ये तो सास्तर पुरान मन में घलो लिखाय हावय। उही ला सुकवारो के बेटा बहु मन हा भोगत हावे। जब ओकर लइका मन घलो बूढ़ा जाहीं तो वइसने उहू मन भोगहीं। तब उहू मन ला रोना आही। कइथे न ‘करनी दीखथे मरनी के बेरा‘ सुकवारो के बेटा बहु मन अपन करनी के फल पावत हे।
शशि कुमार शर्मा
ग्रा व पो. तुमगांव
जिला महासमुन्द